"Swear words in some foreign language are easier to utter and are even tolerated by society."
Tuesday, January 12, 2010
ऊंचे पायदान पर विराजने का दुःख
जब मै छोटा था तब इब्ने सफी और प्रेम प्रकाश को बड़े चाव से पढ़ता था | कर्नल विनोद ,केप्टन हामिद ,विजय इत्यादि मेरे चहेते हीरो थे |उनकी जासूसी दुनिया और उनके कारनामे बड़े ही अच्छे और रोचक लगते थे |पर दिमाग के एक कोने में कभी कभी ये ख्याल भी झांकता रहता था की ये महापुरुष दिन रात ख़ूनी का या देश के दुश्मनों का पीछा करते रहते है ,कई बार तो बड़ी अड़ी तड़ी वाली स्थिति भी होती है और अगर ऐसे में इन्हें नित्यकर्मो से निपटने की आवश्यकता आन पड़े तो ये कैसा करते होंगे ? किताबें पढने का मेरा शौक बदस्तूर जरी रहा ,उपन्यास ,कहानियां ,महापुरुषों की जीवनिया ,जितनी मिली सभी तो पढ़ डाली पर मेरी जिज्ञासा का समाधान नहीं हुआ आज तक |
हमने बड़े आदमी को काफी बड़ा बना कर रखा हुआ है | हमारे मन में यह विचार कभी आता ही नहीं की वो भी एक सामान्य आदमी है और उसका जीवन भी उन्ही सामान्य क्रियाओं से संचालित होता है जिस से की आपका और हमारा |हम ऐसा क्यों समझते हैं की फलां व्यक्ति डॉक्टर है तो बीमार नहीं पड़ सकता ,पुलिस का बड़ा अधिकारी है तो चोर नहीं हो सकता ,मंत्री है तो भ्रष्ट नहीं हो सकता | बड़ा होना क्या आदमी होने से नकारने जैसा है? क्या नारायण दत्त तिवारी आदमी नहीं है? वैसे ही देवेगौडा भी तो आखिर एक इंसान ही है |क्या उसे गुस्सा नहीं आ सकता ? और अगर उसने एक आम आदमी की तरह गुस्से में गाली दे भी दी तो इतना बवाल क्यों .........
( सभ्य असभ्य का भेद मत समझाइये, ये चर्चा बड़े और आम आदमी की चर्चा है | यह कतई जरूरी नहीं की जो बड़ा है वो सभ्य ही होगा )
Thursday, January 7, 2010
ये तो सरासर ................है !
शीर्षक में जो खाली स्थान है उसे आप अपनी मर्जी से जैसा चांहे वैसा भरले |
आज दोपहर को शासन की तरफ से एक पत्र आया |PNDT CELL (प्रसव पूर्व गर्भ निर्धारण एवं निदान अधिनियम ) जिसका की अध्यक्ष जिले का कलेक्टर और सचिव मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी होता है उनकी तरफ से यह पत्र आया था |पत्र में यह फरमान था की जितने भी चिकित्सक सोनोग्राफी के लिए पंजीकृत हैं उन्हें एक पोस्टर अपने अस्पताल में किसी प्रमुख स्थान पर लगाना आवश्यक है | हम सभी सोनोग्राफर इस अधिनियम से बंधे हुए हैं और इसके दिशा निर्देशों का अक्षरश पालन करते हीं हैं | इस नए आदेश को न मानने का सवाल ही नहीं उठता था | किन्तु पोस्टर देखने के बाद मन क्षोभ एवं गुस्से से भर गया | क्या शासन एवं उसके कारिंदे इतने संवेदनहीन हो गए हैं या जान बूझ कर ऐसा कर रहे हैं ? " मशीन खरीदी है तो खर्च निकालना ही होगा " ये पढने के बाद हंसू की रोऊ समझ नहीं पा रहा था | पहले विचार आया था की इस बारे में जिलाधीश के समक्ष अपनी आपत्ति प्रस्तुत करना चाहिए | फिर ख्याल आया की जिसने अपराध किया उसीको जज कैसे बनाऊं ? जिलाधीश द्वारा भेजे गए इस पोस्टर को देख कर मै तो किंकर्तव्यमूढ़ रह गया |
Wednesday, January 6, 2010
रिश्ते
रिश्ते सिरहाने की तरह होते हैं | जब आप थक जातें हैं तो उनके सहारे सो जातें हैं |उदास होतें हैं तो उन पर सर रखकर आंसू बहा देते हैं |खुश होने पर गले लगाकर झूम सकतें हैं | वैसे सपनो में तो वे आपके साथ ही होतें हैं |
ये मेरा नहीं है | कंही से बस यूंही मिल गया |
ये मेरा नहीं है | कंही से बस यूंही मिल गया |
Friday, January 1, 2010
हकीकत
वर्ष बदलने से अब हर्ष नहीं होता
उत्साह उमंग का स्पर्श नहीं होता |
चाह थी कभी दुनिया बदलने की
पर मुझसे अब संघर्ष नहीं होता ||
उत्साह उमंग का स्पर्श नहीं होता |
चाह थी कभी दुनिया बदलने की
पर मुझसे अब संघर्ष नहीं होता ||
Tuesday, December 22, 2009
समझदारी
कंही पढ़ा था की देश के और देश की समस्याओं के बारे में चर्चा करना है तो चिल्ला चिल्ला कर करो पर अगर अपने शहर के बारे में बात कर रहे हो तो दबी जुबान से बात करना सेहत के लिए फायदेमंद होता है |
Monday, December 21, 2009
क्या हमारे देश में भी यही स्थिति है ?
इन्टरनेट पर "Stumble upon" के नाम की एक सेवा उपलब्ध है |इसमें विषय के हिसाब से नेट पर उपलब्ध विषय वस्तु को देखा जा सकता है |फुर्सतियो का काम है |एक मजेदार चीज पढने को मिली ,उसका हिंदी रूपांतरण प्रस्तुत कर रहा हूँ |इस रचना का श्रेय जेफरी .जे .मेक गवर्न को |
क्या गणित की शिक्षा का स्तर इस से भी नीचे गिर सकता है ?
गणित का अध्यापन १९५० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था | उसे कितना मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९६० में -----
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था या ८० रुपये |उसे कितना मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९७० में --------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था | क्या उसे मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९८० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था और उसका मुनाफा था २० रुपये | आपको क्या करना है ---- मुनाफे के आकडे को अंडरला इन करना है |
गणित का अध्यापन १९९० में ------
एक लकडहारे ने एक गाडी लकड़ी के लिए कई पेड़ काट डाले | वह स्वार्थी है ,उसे दुनिया की परवाह नहीं है और पर्यावरण के बारे में उदासीन है |और यह सब वो २० रुपये मुनाफा कमाने के लिए कर रहा है |आप उसके इस तरह पैसे कमाने के बारे में क्या सोचते हैं ?इस प्रश्न का उत्तर देने के बाद कक्षा को एक छोटा लेख लिखना है | विषय है ---पक्षियों और गिलहरी को कैसा लगा होगा जब लकडहारा पेड़ काट रहा था ?(सभी उत्तर सही होंगे )
नतीजा २००५ में ------
पिछले हप्ते एक दुकान में मैंने एक चाकलेट ३ रुपये ७५ पैसे में खरीदी . काउंटर पर खड़ी लड़की को मैंने ५ रुपये का नोट दिया और चिल्लर ढूंड कर ७५ पैसे और दिए |वह मेरे द्वारा दिए गए नोट और चिल्लर को देखती रही और कुछ सोचती रही |मै उसकी दिक्कत समझ कर उस से बोला की तुम मुझे २ रुपये वापस कर दो |पर उस को यह बात समझ नहीं आई और उसने अपने मालिक को बुलाया |जब मालिक ने उसे गुणा भाग समझाने की कोशिश की तो वो रोने लगी ----------------------------!!!!!
क्या गणित की शिक्षा का स्तर इस से भी नीचे गिर सकता है ?
गणित का अध्यापन १९५० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था | उसे कितना मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९६० में -----
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था या ८० रुपये |उसे कितना मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९७० में --------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था | क्या उसे मुनाफा हुआ ?
गणित का अध्यापन १९८० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था और उसका मुनाफा था २० रुपये | आपको क्या करना है ---- मुनाफे के आकडे को अंडरला इन करना है |
गणित का अध्यापन १९९० में ------
एक लकडहारे ने एक गाडी लकड़ी के लिए कई पेड़ काट डाले | वह स्वार्थी है ,उसे दुनिया की परवाह नहीं है और पर्यावरण के बारे में उदासीन है |और यह सब वो २० रुपये मुनाफा कमाने के लिए कर रहा है |आप उसके इस तरह पैसे कमाने के बारे में क्या सोचते हैं ?इस प्रश्न का उत्तर देने के बाद कक्षा को एक छोटा लेख लिखना है | विषय है ---पक्षियों और गिलहरी को कैसा लगा होगा जब लकडहारा पेड़ काट रहा था ?(सभी उत्तर सही होंगे )
नतीजा २००५ में ------
पिछले हप्ते एक दुकान में मैंने एक चाकलेट ३ रुपये ७५ पैसे में खरीदी . काउंटर पर खड़ी लड़की को मैंने ५ रुपये का नोट दिया और चिल्लर ढूंड कर ७५ पैसे और दिए |वह मेरे द्वारा दिए गए नोट और चिल्लर को देखती रही और कुछ सोचती रही |मै उसकी दिक्कत समझ कर उस से बोला की तुम मुझे २ रुपये वापस कर दो |पर उस को यह बात समझ नहीं आई और उसने अपने मालिक को बुलाया |जब मालिक ने उसे गुणा भाग समझाने की कोशिश की तो वो रोने लगी ----------------------------!!!!!
Friday, December 18, 2009
kudos to the creator
The small animated GIF image you see on the side bar ,i recieved in one of my emails about 3years ago. The sender of this image was not the creator of this image. The creator is still unknown. Hats of to him for condensing the life cycle in a less than 300 pixel image.The credit for this image should go to the yet unknown author.I am taking the liberty to publish it on my blog for the sole purpose of sharing a good thing.
Wednesday, December 16, 2009
mind without fear -------tagore
Mind Without Fear
Where the mind is without fear and the head is held high;
Where knowledge is free;
Where the world has not been broken up
into fragments by narrow domestic walls;
Where words come out from the depth of truth;
Where tireless striving stretches its arms towards perfection;
Where the clear stream of reason
has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee into ever-widening thought and action---
Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.
Few years ago i had modified the poem to suit the then current scenario.I don't think there is any change .It should be good for the present .
Few years ago i had modified the poem to suit the then current scenario.I don't think there is any change .It should be good for the present .
MIND WITH OUR FEAR
Where the mind is full of fear and the head held high;(by a hangman's noose)
Where knowledge is free;(And we are free of knowledge)
Where the world has been broken up into fragments by narrow domestic walls;(also by caste,creed and language)
Where words come out from the depth of truth;(truth remains buried deep down)
Where tireless striving (For power and money)stretches its arms towards perfection;(Corruption)
Where the clear stream of reason has lost its way in the dreary desert sand of dead habit;
Where the mind is led forward by thee into ever widening chaos and anarchy-
Into that hell , my father , let my country sleep ;(its eternal sleep)
Tuesday, December 15, 2009
क्या यह सच नहीं है ?
अभी कुछ दिनों पहले जगजीत सिंग की एक गजल सुन रहा था -----प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है | सो तो है , पर क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि बाद में तो प्यार के ख़त लिखना ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है !
Monday, December 14, 2009
Hindu Gods are lazy
In the year 1900 there were two gods looking after one Hindu.(There are 330,000,000 gods in hindu mythology).In the year 2000 one god had to look after only two hindus.They seem to be doing hardly anything,Look at the plight of hindus!. Compared to this One Christ And one Allah are doing a fairly good job.
kabir+abida parveen =ecstasy
I am a strong believer of '' THERE ARE NO GODS" theory.So naturally KABIR is my favorite. ABIDA PARVEEN adds a new flavour to KABIR.It is a heady combination.
These are my favorites.........
http://www.ziddu.com/download/7727690/LINE_IN_TRACK_04.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727689/LINE_IN_TRACK_03.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727494/LINE_IN_TRACK_02.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727364/LINE_IN_TRACK_01.MP3.html
Wish there was some method for rendering these songs in the background.
These are my favorites.........
http://www.ziddu.com/download/7727690/LINE_IN_TRACK_04.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727689/LINE_IN_TRACK_03.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727494/LINE_IN_TRACK_02.MP3.html
http://www.ziddu.com/download/7727364/LINE_IN_TRACK_01.MP3.html
Wish there was some method for rendering these songs in the background.
Sunday, December 13, 2009
whitey
This is whitey and her litter.She came in our lives 13 yrs back and left us yesterday. I sincerely hope that some of her goodness will rub upon me and make me a better human .
शुक्र है समझदानी तो है
इन दिनो चिठ्टा जगत मे घूमने का चस्का सा लग गया था.पिटारा टूलबार के रहते हिन्दी चिठ्टा जगत की खाक छानना आसान हो गया है। बहुत रोचक सामग्री पढ्ने को मिली.लोग खूब लिखतें हैं और क्या खूब लिखतें हैं। अपने तो ये हाल है कि पढ के बेहाल हैं।विषय वस्तु का इतना विशाल भन्डार कि ऐसा लगे मानो किसी बडे डिपार्ट्मेन्टल स्टोर में आ गयें हो।
कलम को दस्त लगते मैने इन्टरनेट पर ही देखा और मैं हूं की कब्ज से परेशां हूं।
एक बात बडी शिद्दत से समझ आई । ये लिखने वाले भी बडे कुत्ती चीज होते है।मैं लिख रहा हूं तू पढ और तारीफ़ में कमेन्ट वाली जगह भर दे।तू लिखेगा तो मै भी अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक अच्छा सा कमेन्ट तेरे बारे मे लिख दूंगा।मै तुझे फ़ालो करुंगा और तू मुझे फ़ालो कर। ऐसे २५-५० चाहने वाले बन जाये तो अपनी तो बन आये।ईतनी बार या यूं कहें कि बार बार एक दूसरे की साईट पर सर्फ़ करेंगे तो गूगल का सर्च ईंजन भी अपने इस मकडजाल मे फ़स जायेगा और फ़िर भोले भाले युजर्स को भी अपने चिठ्टा जगत मे फ़ांस लेगा।
अभी इतना ही क्योंकि आप तो जानते ही हैं ----मेरी समझदानी का छेद छोटा जो है.............
कलम को दस्त लगते मैने इन्टरनेट पर ही देखा और मैं हूं की कब्ज से परेशां हूं।
एक बात बडी शिद्दत से समझ आई । ये लिखने वाले भी बडे कुत्ती चीज होते है।मैं लिख रहा हूं तू पढ और तारीफ़ में कमेन्ट वाली जगह भर दे।तू लिखेगा तो मै भी अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक अच्छा सा कमेन्ट तेरे बारे मे लिख दूंगा।मै तुझे फ़ालो करुंगा और तू मुझे फ़ालो कर। ऐसे २५-५० चाहने वाले बन जाये तो अपनी तो बन आये।ईतनी बार या यूं कहें कि बार बार एक दूसरे की साईट पर सर्फ़ करेंगे तो गूगल का सर्च ईंजन भी अपने इस मकडजाल मे फ़स जायेगा और फ़िर भोले भाले युजर्स को भी अपने चिठ्टा जगत मे फ़ांस लेगा।
अभी इतना ही क्योंकि आप तो जानते ही हैं ----मेरी समझदानी का छेद छोटा जो है.............
Saturday, December 12, 2009
दुखवा मै कासे कहूं-- 2
राधा रमणजी का परिवार उन्हें लेकर कल अस्पताल आया था .दोनों बेटे और बहुए और साथ में राधा रमणजी की पत्नी .पूरा कुनबा ही साथ में था . कई दिनों से बीमार चल रहे थे और गाँव में छोटे मोटे डाक्टरों को दिखाने से भी कोई लाभ नहीं हो रहा था. सभी व्यक्ति काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे. साल भर पहले एक बार मैंने उन्हें देखा था ,उसके हिसाब से मुझे भी वे थोड़े बीमारू दिखे . बड़े बेटे ने विस्तार से उनकी बीमारी का हाल बताया. पिछले दो तीन महीनो से स्वास्थ ठीक नहीं चल रहा था .बाबूजी कुछ सुस्त से रहने लगे थे और खान पान की तरफ भी ध्यान नहीं रखते थे .भूख तो उन्हें लगती थी पर धीरे धीरे उनका भोजन कम हो रहा था . खाते वक्त कभी कभी ठसका भी लग जाता था .कभी किसी कौर को पानी का सहारा लेकर निगलना पड़ता था . वजन भी कम हो रहा था .हल्का बुखार भी रहता था .गाँव में डॉक्टर ने जांच कर के बताया था की थोडा मलेरिया का असर है .१०० -१०० रुपये वाले तीन इंजेक्शन भी लगाए थे पर कोई फायदा नहीं हुआ. फिर मोतीझरा भी हो गया पर उसके इलाज से भी कोई फायदा समझ नहीं आ रहा . हम सब परेशान है इसलिए अब आप के पास बाबूजी को लायें हैं .
मैंने राधा रमणजी की जांच की ,सब कुछ सामान्य ही था पर उनके लड़के द्वारा बताई बातों से अन्न नलिका की बीमारी का शक तो था ही मैंने उन्हें एंडोस्कोपी करने की सलाह दी और रिपोर्ट के साथ पुनः आने को कहा .
दो घंटे बाद पूरा परिवार फिर से मेरे कमरे में रिपोर्ट के साथ हाजिर हो गया. जैसा की मुझे शंका थी वैसा ही निकला . उन्हें अन्न नलिका में एक गठान थी और उसके कैंसर होने की संभावना शत प्रतिशत थी .एंडोस्कोपी करने वाले डॉक्टर ने उन्हें कुछ जानकारी नहीं दी थी .रिपोर्ट के साथ यह कह कर मेरे पास भेज दिया की मै उन्हें सब समझा दूंगा.किसी भी डॉक्टर के लिए इस तरह की जानकारी किसी भी मरीज को देना थोडा कठीन ही होता है.मेरे सामने भी वही दुविधा थी .मैंने घुमा फिरा कर बुरी खबर को हलका करने की कोशिश करते हुए १५-२० मिनट लगा दिए मुद्दे की बात करने. और फिर बोल ही दिया की बाबूजी को अन्न नली का कैंसर हो गया है और इसके लिए अब उन्हें नागपुर या जबलपुर जा कर आगे की जांच और इलाज के बारे में सोचना होगा . मै अभी और विस्तृत चर्चा करने ही वाला था की तभी छोटे बेटे ने बीच में ही टोंक कर पुछा -------- डॉक्टर साहब और तो कोई सिरिअस बात नहीं है ना?
मैंने राधा रमणजी की जांच की ,सब कुछ सामान्य ही था पर उनके लड़के द्वारा बताई बातों से अन्न नलिका की बीमारी का शक तो था ही मैंने उन्हें एंडोस्कोपी करने की सलाह दी और रिपोर्ट के साथ पुनः आने को कहा .
दो घंटे बाद पूरा परिवार फिर से मेरे कमरे में रिपोर्ट के साथ हाजिर हो गया. जैसा की मुझे शंका थी वैसा ही निकला . उन्हें अन्न नलिका में एक गठान थी और उसके कैंसर होने की संभावना शत प्रतिशत थी .एंडोस्कोपी करने वाले डॉक्टर ने उन्हें कुछ जानकारी नहीं दी थी .रिपोर्ट के साथ यह कह कर मेरे पास भेज दिया की मै उन्हें सब समझा दूंगा.किसी भी डॉक्टर के लिए इस तरह की जानकारी किसी भी मरीज को देना थोडा कठीन ही होता है.मेरे सामने भी वही दुविधा थी .मैंने घुमा फिरा कर बुरी खबर को हलका करने की कोशिश करते हुए १५-२० मिनट लगा दिए मुद्दे की बात करने. और फिर बोल ही दिया की बाबूजी को अन्न नली का कैंसर हो गया है और इसके लिए अब उन्हें नागपुर या जबलपुर जा कर आगे की जांच और इलाज के बारे में सोचना होगा . मै अभी और विस्तृत चर्चा करने ही वाला था की तभी छोटे बेटे ने बीच में ही टोंक कर पुछा -------- डॉक्टर साहब और तो कोई सिरिअस बात नहीं है ना?
Subscribe to:
Posts (Atom)