Tuesday, December 22, 2009

समझदारी

कंही पढ़ा था की देश के और देश की समस्याओं के बारे में चर्चा करना है तो चिल्ला चिल्ला कर करो पर अगर अपने शहर के बारे में बात कर रहे हो तो दबी जुबान से बात करना सेहत के लिए फायदेमंद होता है |

Monday, December 21, 2009

क्या हमारे देश में भी यही स्थिति है ?

इन्टरनेट पर  "Stumble upon"  के नाम की एक सेवा उपलब्ध है |इसमें  विषय  के हिसाब से नेट पर उपलब्ध  विषय वस्तु को देखा जा सकता है |फुर्सतियो का काम है |एक मजेदार चीज पढने को मिली ,उसका हिंदी रूपांतरण प्रस्तुत कर रहा हूँ |इस रचना का श्रेय जेफरी .जे .मेक गवर्न को |

क्या गणित की शिक्षा का स्तर इस से भी नीचे गिर सकता है ?

गणित  का अध्यापन   १९५० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था | उसे कितना मुनाफा  हुआ ?

 गणित  का अध्यापन  १९६० में -----

एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं |उसका उतपादन खर्च बेचीं गई कीमत का ४/५ था
या ८० रुपये |उसे कितना मुनाफा हुआ ?

गणित  का अध्यापन  १९७० में --------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था | क्या उसे मुनाफा हुआ ?

गणित का अध्यापन  १९८० में -------
एक लकडहारे ने एक गाड़ी लकड़ी १०० रुपये में बेचीं | उसका उत्पादन खर्च ८० रुपये था  और उसका मुनाफा था २० रुपये | आपको  क्या करना है ---- मुनाफे के आकडे को अंडरला इन  करना है |

गणित का अध्यापन १९९० में ------
एक लकडहारे ने एक गाडी लकड़ी के लिए कई पेड़ काट डाले | वह स्वार्थी है ,उसे दुनिया की परवाह नहीं है  और पर्यावरण के बारे में उदासीन है |और यह सब वो २० रुपये मुनाफा कमाने के लिए कर रहा है |आप उसके इस तरह पैसे कमाने के बारे में क्या सोचते हैं ?इस प्रश्न का उत्तर देने के बाद कक्षा को एक छोटा लेख लिखना है | विषय है ---पक्षियों और गिलहरी को कैसा लगा होगा जब लकडहारा पेड़
काट  रहा था ?(सभी उत्तर सही होंगे )

नतीजा  २००५ में ------
पिछले हप्ते एक
दुकान में मैंने एक चाकलेट ३ रुपये ७५ पैसे में खरीदी . काउंटर पर खड़ी लड़की को मैंने ५ रुपये का नोट दिया और चिल्लर ढूंड कर ७५ पैसे और दिए |वह मेरे द्वारा दिए गए नोट और चिल्लर को देखती रही और कुछ सोचती रही |मै उसकी दिक्कत समझ कर उस से बोला की तुम मुझे  २ रुपये वापस कर दो |पर उस को यह बात समझ नहीं आई और उसने अपने मालिक को बुलाया |जब मालिक ने उसे गुणा भाग समझाने की कोशिश की तो वो रोने लगी ----------------------------!!!!!



Friday, December 18, 2009

kudos to the creator

The small animated GIF image you see on the side bar ,i recieved in one of my emails about 3years ago. The sender of this image was not the creator of this image. The creator is still unknown. Hats of to him for condensing the life cycle in a less than 300 pixel image.The credit for this image should go to the yet unknown author.I am taking the liberty to publish it on my blog for the sole purpose of sharing a good thing.

Wednesday, December 16, 2009

mind without fear -------tagore

Mind Without Fear


Where the mind is without fear and the head is held high;


Where knowledge is free;


Where the world has not been broken up
into fragments by narrow domestic walls;


Where words come out from the depth of truth;


Where tireless striving stretches its arms towards perfection;


Where the clear stream of reason
has not lost its way into the dreary desert sand of dead habit;


Where the mind is led forward by thee into ever-widening thought and action---


Into that heaven of freedom, my Father, let my country awake.



Few years ago i had modified the poem to suit the then current scenario.I don't think there is any change .It should be good for the present .

MIND WITH OUR FEAR

Where the mind is full of fear and the head held high;(by a hangman's noose)

Where knowledge is free;(And we are free of knowledge)

Where the world has been broken up into fragments by narrow domestic walls;(also by caste,creed and language)

Where words come out from the depth of truth;(truth remains buried deep down)

Where tireless striving (For power and money)stretches  its arms towards perfection;(Corruption)

Where the clear stream of reason has lost its way in the dreary desert  sand of  dead habit;

 Where the mind is led forward by thee into ever widening chaos and anarchy-

Into that hell , my father , let my country sleep ;(its eternal sleep)

 
  
 

Tuesday, December 15, 2009

क्या यह सच नहीं है ?

अभी कुछ दिनों पहले जगजीत सिंग की एक गजल सुन रहा था -----प्यार का पहला ख़त लिखने में वक्त तो लगता है | सो तो है , पर क्या  आपको ऐसा नहीं लगता कि बाद में तो  प्यार के ख़त लिखना ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है !

Monday, December 14, 2009

Hindu Gods are lazy

In the year 1900 there were two gods looking after one Hindu.(There are 330,000,000 gods in hindu mythology).In the year 2000 one god had to look after only two hindus.They seem to be doing hardly anything,Look at the plight of hindus!. Compared to this One Christ And one Allah are doing a fairly good job.

kabir+abida parveen =ecstasy

 I am a strong believer of '' THERE ARE NO GODS" theory.So naturally KABIR is my favorite. ABIDA PARVEEN adds a new flavour to KABIR.It is a heady combination.
These are my favorites.........
http://www.ziddu.com/download/7727690/LINE_IN_TRACK_04.MP3.html 
http://www.ziddu.com/download/7727689/LINE_IN_TRACK_03.MP3.html 
http://www.ziddu.com/download/7727494/LINE_IN_TRACK_02.MP3.html 
http://www.ziddu.com/download/7727364/LINE_IN_TRACK_01.MP3.html 

Wish there was some method for rendering these songs in the background.

Sunday, December 13, 2009

whitey


This is whitey and her litter.She came in our lives 13 yrs back and left us yesterday. I sincerely hope that some of her goodness will rub upon me and make me a better human .

शुक्र है समझदानी तो है

इन दिनो चिठ्टा जगत मे घूमने का चस्का सा लग गया था.पिटारा टूलबार के रहते हिन्दी चिठ्टा जगत की खाक छानना आसान हो गया है। बहुत रोचक सामग्री पढ्ने को मिली.लोग खूब लिखतें हैं और क्या खूब लिखतें हैं। अपने तो ये हाल है कि पढ के बेहाल हैं।विषय वस्तु का इतना विशाल भन्डार कि ऐसा लगे मानो किसी बडे डिपार्ट्मेन्टल स्टोर में आ गयें हो।

कलम को दस्त लगते मैने इन्टरनेट पर ही देखा और मैं हूं की कब्ज से परेशां हूं।

एक बात बडी शिद्दत से समझ आई । ये लिखने वाले भी बडे कुत्ती चीज होते है।मैं लिख रहा हूं तू पढ और तारीफ़ में कमेन्ट वाली जगह भर दे।तू लिखेगा तो मै भी अपना फ़र्ज़ निभाते हुए एक अच्छा सा कमेन्ट तेरे बारे मे लिख दूंगा।मै तुझे फ़ालो करुंगा और तू मुझे फ़ालो कर। ऐसे २५-५० चाहने वाले बन जाये तो अपनी तो बन आये।ईतनी बार या यूं कहें कि बार बार एक दूसरे की साईट पर सर्फ़ करेंगे तो गूगल का सर्च ईंजन भी अपने इस मकडजाल मे फ़स जायेगा और फ़िर भोले भाले युजर्स को भी अपने चिठ्टा जगत मे फ़ांस लेगा।
अभी इतना ही क्योंकि आप तो जानते ही हैं ----मेरी समझदानी का छेद छोटा जो है.............

Saturday, December 12, 2009

दुखवा मै कासे कहूं-- 2

राधा रमणजी का परिवार उन्हें लेकर कल अस्पताल आया था .दोनों बेटे और बहुए और साथ में राधा रमणजी की पत्नी .पूरा कुनबा ही साथ में था . कई दिनों से बीमार चल रहे थे और गाँव में छोटे मोटे डाक्टरों को दिखाने से भी कोई लाभ नहीं हो रहा था. सभी व्यक्ति काफी चिंतित दिखाई दे रहे थे. साल भर पहले एक बार मैंने उन्हें देखा था ,उसके हिसाब से मुझे भी वे थोड़े बीमारू दिखे . बड़े बेटे ने विस्तार से उनकी बीमारी का हाल बताया. पिछले दो तीन महीनो से स्वास्थ ठीक नहीं चल रहा था .बाबूजी कुछ सुस्त से रहने लगे थे और खान पान की तरफ भी ध्यान नहीं रखते थे .भूख तो उन्हें लगती थी पर धीरे धीरे उनका भोजन कम हो रहा था . खाते वक्त कभी कभी ठसका भी लग जाता था .कभी किसी कौर को पानी का सहारा लेकर निगलना पड़ता था . वजन भी कम हो रहा था .हल्का बुखार भी रहता था .गाँव में डॉक्टर ने जांच कर के बताया था की थोडा मलेरिया का असर है .१०० -१०० रुपये वाले तीन इंजेक्शन  भी लगाए थे पर कोई फायदा नहीं हुआ. फिर मोतीझरा  भी हो गया पर उसके इलाज से भी कोई फायदा समझ नहीं आ रहा . हम सब परेशान है इसलिए अब आप के पास बाबूजी को लायें हैं .
मैंने राधा रमणजी की जांच की ,सब कुछ सामान्य ही था पर उनके लड़के द्वारा बताई बातों से अन्न नलिका की बीमारी का शक तो था ही मैंने उन्हें एंडोस्कोपी करने की सलाह दी और रिपोर्ट के साथ पुनः आने को कहा .
दो घंटे बाद पूरा परिवार फिर से मेरे कमरे में रिपोर्ट के साथ हाजिर हो गया. जैसा की मुझे शंका थी वैसा ही निकला . उन्हें अन्न नलिका में एक गठान थी और उसके कैंसर होने की संभावना शत प्रतिशत थी .एंडोस्कोपी करने वाले डॉक्टर ने उन्हें कुछ जानकारी नहीं दी थी .रिपोर्ट के साथ यह कह कर मेरे पास भेज दिया की मै उन्हें सब समझा दूंगा.किसी भी डॉक्टर के लिए इस तरह की जानकारी किसी भी मरीज को देना थोडा कठीन ही होता है.मेरे सामने भी वही दुविधा थी .मैंने घुमा फिरा कर बुरी खबर को हलका करने की कोशिश करते हुए १५-२० मिनट लगा दिए मुद्दे की बात करने. और फिर बोल ही दिया की बाबूजी को अन्न नली का कैंसर हो गया है और इसके लिए अब उन्हें नागपुर या जबलपुर जा कर आगे की जांच और इलाज के बारे में सोचना होगा . मै अभी और विस्तृत चर्चा करने ही वाला था की तभी छोटे बेटे ने बीच में ही टोंक कर पुछा -------- डॉक्टर साहब और तो कोई सिरिअस बात नहीं है ना?

Friday, December 11, 2009

ऐसा क्यूँ-- 2

कुछ व्यक्ति अपना  गुस्सा ,अपना क्षोभ ,अपनी कुंठाए लम्बे समय तक अपने अन्दर पाल कर रखते हैं. खुद भी दुखी रहते हैं और साथ वालों को भी दुखी करतें है . जो बीत गया उसका दुःख और भविष्य की चिंता में वर्तमान की ऐसी की तैसी हो रही है इसका उन्हें ख्याल भी नहीं रहता . हमेशा बड़े सुखो की चाह के चलते प्रचुर मात्रा में उपलब्ध छोटी छोटी खुशियाँ बेमानी हो जाती हैं .

Monday, December 7, 2009

points to ponder

Last year i particularly liked a email i received .I do not remember the original creator of this email but i did save the contents..........
THINK

Have a look at this

Salary & Govt. Concessions for a Member of Parliament (MP)

Monthly Salary 12,000

Expense for Constitution per month 10,000

Office expenditure per month 14,000

Traveling concession (Rs. 8 per km)48,000 ( eg.For a visit from kerala to Delhi & return: 6000 km)

Daily DA TA during parliament meets 500/day

Charge for 1 class (A/C) in train: Free (For any number of times)(All over India )

Charge for Business Class in flights Free for 40 trips / year (With wife or P.A.)

Rent for MP hostel at Delhi Free

Electricity costs at home Free up to 50,000 units

Local phone call charge Free up to 1 ,70,000 calls.

TOTAL expense for a MP [having no qualification] per year 32,00,000 [i.e . 2.66 lakh/month]

TOTAL expense for 5 years 1,60,00,000

For 534 MPs, the expense for 5 years :
8,54,40,00,000 (nearly 855 crores)

AND THE FINANCE MINISTER IS THINKING TWICE TO GIVE ADEQUATE HIKE TO GOVERNMENT EMPLOYEES IN THE FORTHCOMING FINANCE COMMISSION.....  

This is how all our tax money is been swallowed and price hike on our regular commodities....... 

Also Daily Allowance given to Government Employees on tour is a pittance. Which neither covers the Lodge rent  nor sufficient three square meal  per day.

And this is the present condition of people serving the nation. Millions suffer with poverty, disease and misery.



855 crores could make their life livable !!
Think of the great democracy we have.............

STILL Proud to be INDIAN ?

पेड़ पौधे और गजल

मेरा एक मित्र है सतीश चिले 
वनस्पती शास्त्र का प्रोफ़ेसर है ,बड़े ही कठिन कठिन नाम (वनस्पतियों के )फर्राटे से बोलता है . इस से ठीक विपरीत बहुत ही  सरल भाषा में  गझल के माध्यम से गहरी बात कह जाता है .
उसीके शब्दों में 

 सदा रहे सुर्ख़ियों में, कभी न गुमनाम हुए हम 
कभी हमारा नाम हुआ ,कभी बदनाम हुए हम||

बंदिशों में जब रहे, देश के हालात बिगड़ गए

ज़माना बदल गए ,जब भी बेलगाम हुए हम ||



ये दुनिया समझती है, बस खंजरों की भाषा

मोहब्बत के बोल बोलकर, नाकाम हुए हम ||



पूजा किये मेहमान की, भगवान की तरह

अपनी ही रीत रिवाजों से, गुलाम हुए हम ||



जिस राह चले, क़दमों के निशाँ छोड़ गए

रहजनों से बैर ,रहबरों के पैगाम हुए हम ||
सतीश चिले

 
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