मेरा एक मित्र है सतीश चिले
वनस्पती शास्त्र का प्रोफ़ेसर है ,बड़े ही कठिन कठिन नाम (वनस्पतियों के )फर्राटे से बोलता है . इस से ठीक विपरीत बहुत ही सरल भाषा में गझल के माध्यम से गहरी बात कह जाता है .
उसीके शब्दों में
सदा रहे सुर्ख़ियों में, कभी न गुमनाम हुए हम
कभी हमारा नाम हुआ ,कभी बदनाम हुए हम||
बंदिशों में जब रहे, देश के हालात बिगड़ गए
ज़माना बदल गए ,जब भी बेलगाम हुए हम ||
ये दुनिया समझती है, बस खंजरों की भाषा
मोहब्बत के बोल बोलकर, नाकाम हुए हम ||
पूजा किये मेहमान की, भगवान की तरह
अपनी ही रीत रिवाजों से, गुलाम हुए हम ||
जिस राह चले, क़दमों के निशाँ छोड़ गए
रहजनों से बैर ,रहबरों के पैगाम हुए हम ||
सतीश चिले
Monday, December 7, 2009
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