Monday, October 5, 2009

हँसते रहिये keep laughing

few urdu couplets
poets unknown

रफ्ता रफ्ता हर पुलिस वाले को शायर कर दिया
महफिलों शेर ऐ सुखन में भेज कर सरकार नें
एक कैदी सुबह को फांसी लगा के मर गया
रात भर गज़लें सुनाई उस को थानेदार नें।

एक शाम किसी बज्म में जूते जो खो गए
हमने कहा बताइये घर कैसे जायेंगे
कहने लगे की शेर सुनाते रहों यूँ ही
गिनाते नही बनेंगे अभी इतने आयेंगे।

बोला दुकानदार की क्या चाहिए तुम्हे ?
जो भी कहोगे मेरी दूकान पर वो पाओगे
मैनें कहा की कुत्ते के खाने का केक है ?
बोला यहीं पे खाओगे की लेके जाओगे ?

और अंत में

महबूब वादा करके भी न आया दोस्तों
क्या क्या किया न हमने यहाँ उस के प्यार में
मुर्गे चुरा के लाये थे जो चार "पॉपुलर"
दो आरजू में कट गए दो इन्तेजार में।

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