Thursday, October 29, 2009

इसको कैसे समझें ?

क्या उच्च शिक्षा और समझदारी का आपस में कोई रिश्ता नही होता ?
रोजमर्रा की जिंदगी में कई बार ऐसे उदहारण मिलते रहते है जिनके कारण यह लगता है की वाकई इन दोनों में कोई रिश्ता नही होता ।
पढ़ी लिखी सास हो या बहू हो अगर वे हिन्दुस्तान में रहती है तो आपस में झगडेगी हीं।

वैसा ही कुछ मामला घरेलु हिंसा का भी है । गरीब अमीर चाहें वो गंवार हो या पढ़े लिखे हों घरेलु हिंसा के मामलो में शायद ही दोनों में कोई फरक होगा। अभी कल ही पता लगा की मेरी एक सहकर्मी जो पेशे से चिकित्सा विशेषज्ञ है ( उसका पति भी चिकित्सा विशेषज्ञ है)को भी इस घरेलु हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। इन दोनों की शादी को १२-१३ साल हो गए है और यह हिंसा का सिलसिला उस समय से ही चल रहा है। इस बार मामला कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गया इसलिए हमें याने उसके सहकर्मियों को पता चल पाया । १२ वर्षो से ये चला आ रहा है । ऐसा क्यूँ ?

मेरी एक बहन के साथ भी इसी तरह का मामला था । वह भी कई सालों तक चलता रहा। एक दिन पानी सर पे से ऊपर गया तो हंगामेदार स्थिति पैदा हो गई। उसके मामलें में भी मेरे मन में एक ही प्रश्न था की ऐसा क्यूँ?

ऐसी किसी भी भी घटना की तार्किक परिणति तलाक में होनी चाहिए । दोनों ही घटनाओं में ऐसा होना चाहिए ये मेरी सोच थी । पर मेरी बहन के मामले में ऐसा कुछ नही हुआ और वो आज अपने पति के साथ रह रही है । खुश है या नही ,मैं नही जानता !। मेरी सहकर्मी के बारे में भी मैं बहुत आश्वस्त नही हूँ । उसकी बातों से मुझे नही लगता की यंहा भी तर्क काम करेगा ।

इसको कैसे समझें ?



3 comments:

रचना गौड़ ’भारती’ said...

आज के समय मैं संयुक्त परिवार का बहुत कम प्रचलन है । क्योंकि हर आदमी की सोच बहुत संकीर्ण हो चुकी है ,स्वार्थी ज़िन्दगी जी रहा है आज का मनुष्य । एक दूसरे को सहन करने की क्षमता नहीं है । एक दूसरे की प्रोग्रेस सहन नहीं होती ।

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लॉग लेखन के लिए स्वागत और शुभकामनायें
कृपया अन्य ब्लॉगों पर भी जाएँ और अपने सुन्दर
विचारों से अवगत कराएँ

डॉ. राधेश्याम शुक्ल said...

yah poori duniya ki samashya hai.yah jaivik aur sanskritik hai.

 
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