हुज़ूर आपका भी एहतराम करता चलूँ
इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ ।
निगाहे दिल की आखिरी यही तमन्ना है
तुम्हारी जुल्फों के साये में शाम करता चलूँ।
उन्हें ये जिद की मुझे देख कर किसीको न देख
मेरा ये शौक के सब को सलाम करता चलूँ ।
ये मेरे ख्वाबो की दुनिया नहीं साहिल लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ।
तुम्हारे हुस्न से जागे तमाम हंगामें
मैं दो ही लफ्जों में किस्सा तमाम करता चलूँ।
मेरे कलाम की शादाब सादगी अच्छी
अवाम सुन के मजे ले मैं नाम करता चलूँ.
Wednesday, September 9, 2009
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