Wednesday, August 26, 2009

yesterdays unfinished work

more from fazal tabish

न कर शुमार के हर शै गिनी नही जाती
ये जिंदगी है हिसाबो से जी नही जाती

चारो और खड़े है दुश्मन, बीचों बीच अकेला मैं
जबसे मुजको खुशफहमी है, सब घटिया हैं बढ़िया मैं।


some couplets from taj bhopali

मैं चाहता हूँ निजाम ऐ कुहन बदल डालूं
मगर ये बात फकत मेरे बस की बात नही
उठो बढो मेरी दुनिया के आम इंसानो
ये सब की बात है दो चार दस की बात नही.


नुमाइश के लिए जो मर रहे हैं
वोह घर के आइनों से डर रहे
बला से जुगनुओ का नाम दे दो
कम से कम रौशनी तो कर रहे हैं.

तुम्हे कुछ भी नही मालूम लोगो
फरिश्तो की तरह मासूम लोगो
जमी पर पाव आंखे असमान पर
रहोगे उम्रभर मगमूम लोगो
अगर तेषा नही पथ्थर उठा लो
रहोगे कब तलक मजलूम लोगो

निर्वाण घर में बैठ कर होता नही कभी
बुद्ध की तरह कोई मुझे घर से निकाल दे
पीछें बंधे हैं हाथ मगर शर्त है सफर
किस से कहे की पाँव के कांटे निकाल दे.


lastly few gems from ijlal majid.

सोचते हो की ये नही होगा
आसमा एक दिन जमीं होगा
कोई मरने से मर नही जाता
देखना वोह यहीं कहीं होगा.

दरिया चढा तो पानी नशेबो में भर गया
अब के भी बारिशो में हमारा ही घर गया.

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